
• वर्ष 2024-25 में ही जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन (JRC) ने 38,388 बचाव अभियानों के माध्यम से कुल 53,651 बच्चों को बचाया, जिसमें तेलंगाना सबसे आगे रहा, उसके बाद बिहार, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और दिल्ली का स्थान रहा
• JRC देश का सबसे बड़ा बाल संरक्षण नेटवर्क है, जिसमें 250 से अधिक स्वयंसेवी संस्थाएं शामिल हैं
• रिपोर्ट में राष्ट्रीय बाल श्रम उन्मूलन मिशन और बचाए गए बच्चों के लिए पुनर्वास कोष स्थापित करने की सिफारिश भी की गई है
नई दिल्ली, जून 2025: एक चौंकाने वाली रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि बीते एक वर्ष में भारत भर में 53,651 बच्चों को बाल श्रम, तस्करी और अपहरण जैसी परिस्थितियों से बचाया गया, जिनमें से लगभग 90% बच्चे ऐसे क्षेत्रों में कार्यरत थे जिन्हें ‘सबसे खराब श्रेणी के बाल श्रम’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इनमें स्पा, मसाज पार्लर और ऑर्केस्ट्रा शामिल हैं, जहां बच्चों को वेश्यावृत्ति, अश्लीलता और यौन शोषण जैसी अमानवीय स्थितियों में काम करने के लिए मजबूर किया गया।
इन बचाव अभियानों को जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन (JRC) के 250 से अधिक एनजीओ साझेदारों ने पुलिस और अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ मिलकर 418 जिलों में अंजाम दिया। इस डेटा को “बिल्डिंग द केस फॉर ज़ीरो: हाउ प्रॉसीक्यूशन एक्ट्स ऐज़ ए टिपिंग पॉइंट टू एंड चाइल्ड लेबर” नामक रिपोर्ट में प्रस्तुत किया गया है, जिसे इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन की अनुसंधान शाखा सेंटर फॉर लीगल एक्शन एंड बिहेवियर चेंज (C-LAB) द्वारा जारी किया गया।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि इन छापों के बाद कुल 38,388 एफआईआर दर्ज की गईं और 5,809 गिरफ्तारियां हुईं, जिनमें से 85% मामले सीधे तौर पर बाल श्रम से जुड़े थे। रिपोर्ट के अनुसार, सर्वाधिक छापे तेलंगाना (7,632) में पड़े, इसके बाद उत्तर प्रदेश (2,469), राजस्थान (2,453) और मध्य प्रदेश (2,335) का स्थान रहा। बचाए गए बच्चों की संख्या में भी तेलंगाना (11,063) सबसे ऊपर रहा, जबकि बिहार (3,974), राजस्थान (3,847), उत्तर प्रदेश (3,804) और दिल्ली (2,588) में भी बड़ी संख्या में बच्चों को छुड़ाया गया।
रिपोर्ट में सुझाया गया है कि सरकार को एक राष्ट्रीय बाल श्रम उन्मूलन मिशन शुरू करना चाहिए, जिसके लिए समुचित बजटीय प्रावधान हों। इसके साथ ही प्रत्येक जिले में बाल श्रम टास्क फोर्स गठित करने की भी सिफारिश की गई है। रिपोर्ट अप्रैल 2024 से मार्च 2025 के बीच चले बचाव अभियानों के आधार पर तैयार की गई है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जब तक बाल श्रम करने वालों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई नहीं होगी, तब तक इसे खत्म करना मुश्किल होगा। साथ ही, यदि बच्चों की शिक्षा और पुनर्वास के उचित प्रबंध नहीं किए गए, तो वे पुनः उसी शोषण के चक्रव्यूह में फंस जाएंगे। ऐसे में बाल श्रमिक पुनर्वास कोष की स्थापना आज की आवश्यकता बन गई है।
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि 18 वर्ष की आयु तक निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित करना बाल श्रम को रोकने में प्रभावी उपाय होगा, क्योंकि स्कूल छोड़ने वाले बच्चे बाल श्रम की ओर अधिक आकर्षित होते हैं। इसमें सरकारी खरीद में बाल श्रम के उपयोग पर शून्य सहनशीलता नीति, खतरनाक उद्योगों की सूची का विस्तार, राज्य-विशेष नीतियां, SDG 8.7 की समयसीमा को 2030 तक बढ़ाना और आरोपियों के खिलाफ सख्त एवं समयबद्ध कानूनी कार्रवाई जैसे ठोस कदमों की सिफारिश की गई है।
जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन के राष्ट्रीय संयोजक रवि कांत ने कहा, “सबसे भयावह श्रेणियों में इतने अधिक बच्चों का संलग्न होना यह दर्शाता है कि सरकार और नागरिक समाज के प्रयासों के बावजूद, भारत में बाल श्रम उन्मूलन की दिशा में हमारी राष्ट्रीय प्रतिबद्धता अभी भी अधूरी है। भारत ILO कन्वेंशन 182 का हस्ताक्षरकर्ता है, जिसमें खतरनाक बाल श्रम को खत्म करने का संकल्प लिया गया है। सरकार लगातार प्रयास कर रही है और उत्साहवर्धक परिणाम सामने आ रहे हैं।”
उन्होंने आगे कहा, “यह रिपोर्ट यह सिद्ध करती है कि कानूनी कार्रवाई से समाज में कानून का डर पैदा होता है, जिससे बाल श्रम के मामलों में गिरावट आती है। बच्चों को न्याय तभी मिलेगा जब अपराधियों को दंडित किया जाए और पीड़ित बच्चों की सुरक्षा और पुनर्वास की मजबूत व्यवस्था हो। सरकार को चाहिए कि वह अभियोजन प्रणाली को सशक्त बनाए, एक समर्पित बाल श्रमिक पुनर्वास कोष स्थापित करे और एक व्यापक पुनर्वास नीति तैयार करे जिससे ये बच्चे आत्मनिर्भर बन सकें।”